A review by jainandsdiary
Tum Se Mujh Tak | 'तुम' से 'मुझ' तक by Prachi Trehan

5.0

किताब समीक्षा
किताब: ‘तुम’ से ‘मुझ’ तक
लेखिका: प्राची त्रेहन
प्रारूप: ई-पुस्तक(e-book)
पृष्ठ संख्या: 267
रेटिंग: 4.5/5

"तुम से मुझ तक" किताब लेखिका प्राची त्रेहन का पहला उपन्यास है। इसकी कहानी घूमती है प्लाक्षा के इर्द गिर्द, जिसका सपना है पेंटर बनना। रंगों को कैनवास पर बिखेरने का उसका सुख, अपने पापा की सख्ती और हियादतों में बंधकर, बेरंग होने की कगार पर होता है। उसके पिताजी की भाषा में कहे तो, "पेंटिंग का शौक है, तो आर्किटेक्ट बन जाओ"। और यही बात प्लाक्षा को न चाहते हुए भी माननी पड़ती है। लेकिन कहते है ना, कलाकार कला को छोड़ सकता है, कला कलाकार को नहीं। यहां कहानी में आता है विवान, एक दोस्त जो प्लाक्षा को एक पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने में सहायता करता है। और बस, ऐसे ही प्लाक्षा का पेंटिंग का सफ़र जारी रहने की "कोशिश" करता है! अब यह कितना रह पाएगा, और कितना नहीं, यह तो समय की गति और यह कहानी आपको बताएगी।

वैसे सुनने में कहानी काफी आसान और सुलझी हुई लगती है, एकदम आज कल के "रोमांस" जैसी! लेकिन इस कहानी को सिर्फ एक श्रेणी में बांध देना, इस कहानी के साथ नाइंसाफी और बेईमानी होगी। किताब के प्रारंभ होने से पहले "लेखिका की ओर से" में शुरुआत ही इन पंक्तियों के साथ होती है जो इस कहानी के बारे में कुछ शब्दों में ही बहुत कुछ कह जाती है:

कभी उलझते हो प्रेम के ताने-बाने में
कभी जीवन की उधेड़बुन में गुम हो
हाँ, रिश्ते ज़रूरी हैं सभी जीने को
मगर याद रखो कि सबसे महत्वपूर्ण तुम हो।

चार भागों में विभाजित यह कहानी अपने तय किए गए सफ़र में कही पहलुओं को छू कर निकलती है। विषाक्त संबंध(toxic realationship), कैजुअल रिलेशनशिप, दोस्ती के मायने, परिवार का साथ, कार्यस्थल की समस्याएं, नए शहर में जाना, नए लोगों के साथ रहना और सबसे ज़रूरी, खुद की खोज! यह कहानी आपको इन सबके साथ लेते हुए, जब अपने गंतव्य तक पहुंचेगी, तब दिल के कोने में छुपे और दबे कई विचार अपने आप बाहर आने को बेताब होते प्रतीत होंगे।

तुम से मुझ तक कहानी सिर्फ़ प्लाक्षा की नहीं है, बहुत सारे लोगों की है, जो कहीं न कहीं, इस जिंदगी की डगर में, कहीं न कहीं मिल ही जायेंगे! कभी स्वयं में, कभी अपने आस पास!

लेखन शैली के हिसाब से, यह कहानी काफ़ी उम्दा तरीके से लिखी गई है, खासकर पात्रों को दर्शाने में, और उनके विकास में। साधारण भाषा में लिखा ये उपन्यास, अपनी इस विशेषता के कारण, न सिर्फ हिंदी के साहित्य प्रेमियों के लिए, बल्कि उन पाठकों के लिए भी उपयुक्त है, जो हिंदी में लिखी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ना आरंभ करना चाहते है। कहानी में अगर कुछ छोटी सी संपादन की त्रुटियां और बीच में कहीं थोड़ी गति में सुस्ती को हटा दें, तो यह किताब सभी के लिए एक यादगार सफ़र सुनिश्चित करती है।